Shikara full movie downoad review by Tamilrocker
ABOUT SHIKARA MOVIE-
शिकारा निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा का कश्मीर की याद में प्रेम पत्र है जैसा कि एक बार था। उनकी फिल्मों में उनके बारे में एक कालातीतता है। वे खूबसूरती से शूट किए गए हैं, अपनी गति से प्रवाह करते हैं और वास्तविक कहानियों को बताने की कोशिश करते हैं। वह इस एक के साथ कश्मीर वापस चला गया है और कश्मीर में उग्रवाद बढ़ने के कारण हजारों शरणार्थियों की दुर्दशा के बारे में बात करता है। यहां कोई दोष-गेम नहीं है। यह मूल रूप से कश्मीरियत के बारे में एक रहस्य है। जीवन के रास्ते के बारे में एक विलाप हमेशा के लिए खो गया। बड़े मुद्दों को पीछे छोड़ते हुए, यह एक विवाहित जोड़े के बीच एक पुराने जमाने का रोमांस भी है जो वर्षों की कठिनाई के माध्यम से जीवित है और उम्र के साथ भंगुर नहीं होता है।यहाँ मूवी बहुत अच्छी हे इंस्पिरेशन मूवी दी हे हमें हे ये मूवी बॉलीवुड के द्वारा एक सन्देश देना चाहता हैं ,जिसको हमें फॉलो करना चाइये हमेशा
SHIKARA MOVIE INFO-
- CAST: Aadil Khan, Sadia
- DIRECTION: Vidhu Vinod Chopra
- GENRE: Drama, Romance
- DURATION: 2 hours 0 minutes
SHIKARA MOVIE REVIEW INFO-
रामानंद सागर के सौतेले भाई विधु विनोद चोपड़ा को इस बात की दाद देनी चाहिए कि वह मुंबई में बसने के बरसों बाद भी कश्मीरियत को नहीं भूले। श्रीनगर में जन्मे विधु ने बतौर निर्देशक अपनी दूसरी फिल्म खामोश भी कश्मीर की वादियों में ही बनाई थी। एक फिल्म की शूटिंग के दौरान होने वाले कत्ल दर कत्ल की उस कहानी से ही विधु के निर्देशकीय कौशल का दुनिया को अंदाजा हुआ। और, फिर परिंदा की रिलीज के बाद विधु को जो ओहदा हिंदी सिनेमा में मिला, उससे तमाम बड़े निर्देशक अब भी रश्क करते हैं। विधु फिर घाटियों में लौटे हैं। फिर से उन्होंने कश्मीर पर फिल्म बनाई है। और, फिर से उनकी फिल्म की रिलीज गिनती भर के सिनेमाघरों में सिमट कर रह गई है।शिकारी की कहानी के किरदार शिव और शांति एक फिल्म की शूटिंग के दौरान करीब आते हैं। फिल्म का निर्देशक एक ठेठ कश्मीरी जोड़ा चाहता है। ये दोनों खुद को इसके लिए प्रस्तुत करते हैं। एक की लेखनी में दम है। दूसरी की सेवा में। दोनों शूटिंग से भागते हैं। शादी करते हैं। अपना घर भी बसाते हैं। फिर, घाटी में नरसंहार होता है। जम्मू के शरणार्थी कैंप में बरसों तक गुजर बसर के दौरान भी दोनों का अपनी मिट्टी से जुड़ाव बना रहता है। सपना एक ही है कि वहांकी आबो हवा में फिर से खुलकर सांस ले सकें।
यहाँ मूवी बहुत अच्छी हे इंस्पिरेशन मूवी दी हे हमें हे ये मूवी बॉलीवुड के द्वारा एक सन्देश देना चाहता हैं ,जिसको हमें फॉलो करना चाइये हमेशा
शिव संहार के देवता हैं। शांति सब चाहते हैं। इसके लिए कोशिश कोई नहीं करना चाहता। विधु सिनेमा में अपनी बातें इशारों में कहने में माहिर हैं। वह जज्बात के उस्ताद हैं। बस, दो साल पहले शुरू हुई इस फिल्म की कास्टिंग में वह चूक गए। जो बात वह मिशन कश्मीर में ऋतिक रोशन और संजय दत्त जैसे नामी सितारों को लेकर ठीक से बयां नहीं कर पाए वही बात इस बार वह नए चेहरों के जरिए कहना चाहते रहे होंगे। नए कलाकारों के कंधों पर विधु ने भारी बोझ डाला। जिम्मेदारी का ये दबाव दोनों के चेहरों पर दिखता भी रहता है। शादी वाले दृश्य में दोनों के चेहरे पर निर्लिप्तता दिखती है। कहानी की जरूरत के हिसाब से भाव लाना विधु की प्राथमिकता रही होगी, लेकिन ये भाव दर्शकों के मन में अलग रस के हैं और विधु के मन में इन रसों का खाका शायद अलग रंगों से बना होगा। निर्देशक और दर्शक के बीच का पुल यहीं टूटता है।
विधु की फिल्म के इस पुल की दूसरी कमजोरी है फिल्म का इतिहास बताने के चक्कर में प्रेम कहानी की पीड़ा को सही तरीके से परदे पर पेश न कर पाना। हजारों लोगों का अपने घर से दर बदर हो जाना आसान नहीं रहा होगा। विधु के बिंब इस बार फिल्म में कमजोर पड़े हैं। बछड़े को बचाकर वह मौजूदा सियासी संकेतों पर अपना हस्तक्षेप तो दिखाना चाहते हैं लेकिन अमेरिका का राष्ट्रपति जिस दौर में खुद भारत की चुनाव प्रचार प्रणाली की नकल कर रहा हो, उस समय में एक कश्मीरी का उन्हें पत्र लिखने का अर्थ आम दर्शक को समझ नहीं आता। अमेरिका कश्मीर में दखल देना भी चाहे तो मौजूदा भौगालिक आर्थिक समीकरण उसे ऐसा करने नहीं देंगे।
एक निर्देशक के तौर पर विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी मुगले आजम फिल्म परिंदा में ही बना दी थी। खामोश, परिंदा और 1942 ए लव स्टोरी, बस इन तीन फिल्मों जितना ही उनका निर्देशकीय सफरनामा है। नई हीरोइन नेहा (शबाना रजा, अब मनोज बाजपेयी की पत्नी) को लेकर बनाई गई फिल्म करीब से उनका निर्देशन कौतुक चुकना शुरू हुआ और एकलव्य व शिकारा तक आते आते ये तिलिस्म बिखर चुका है।
फिल्म का गीत संगीत कश्मीरी है और हिंदी पट्टी में बहुत ज्यादा प्रचारित प्रसारित भी नहीं है, लिहाजा फिल्म को इससे कोई खास मदद मिलती नहीं है। हां, रंगराजन की सिनेमैटोग्राफी विश्व सिनेमा के टक्कर की है। विधु ने फिल्म के संपादन में अपना नाम भी दिया है सो फिल्म की ढीली पड़ती चाल भी उनके खाते में ही लिखी जाएगी। विधु विनोद चोपड़ा हिंदी सिनेमा के भीतर का निर्देशक रह रहकर हिलोरें तो लेता है, लेकिन इन लहरों के लिए उन्हें एक दमदार शिकारा चाहिए जो उनके निर्देशकीय कौशल को परिंदा वाली लय में लौटा सके। अमर उजाला मूवी रिव्यू में फिल्म शिकारा को मिलते हैं दो स्टार।
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शिव संहार के देवता हैं। शांति सब चाहते हैं। इसके लिए कोशिश कोई नहीं करना चाहता। विधु सिनेमा में अपनी बातें इशारों में कहने में माहिर हैं। वह जज्बात के उस्ताद हैं। बस, दो साल पहले शुरू हुई इस फिल्म की कास्टिंग में वह चूक गए। जो बात वह मिशन कश्मीर में ऋतिक रोशन और संजय दत्त जैसे नामी सितारों को लेकर ठीक से बयां नहीं कर पाए वही बात इस बार वह नए चेहरों के जरिए कहना चाहते रहे होंगे। नए कलाकारों के कंधों पर विधु ने भारी बोझ डाला। जिम्मेदारी का ये दबाव दोनों के चेहरों पर दिखता भी रहता है। शादी वाले दृश्य में दोनों के चेहरे पर निर्लिप्तता दिखती है। कहानी की जरूरत के हिसाब से भाव लाना विधु की प्राथमिकता रही होगी, लेकिन ये भाव दर्शकों के मन में अलग रस के हैं और विधु के मन में इन रसों का खाका शायद अलग रंगों से बना होगा। निर्देशक और दर्शक के बीच का पुल यहीं टूटता है।
विधु की फिल्म के इस पुल की दूसरी कमजोरी है फिल्म का इतिहास बताने के चक्कर में प्रेम कहानी की पीड़ा को सही तरीके से परदे पर पेश न कर पाना। हजारों लोगों का अपने घर से दर बदर हो जाना आसान नहीं रहा होगा। विधु के बिंब इस बार फिल्म में कमजोर पड़े हैं। बछड़े को बचाकर वह मौजूदा सियासी संकेतों पर अपना हस्तक्षेप तो दिखाना चाहते हैं लेकिन अमेरिका का राष्ट्रपति जिस दौर में खुद भारत की चुनाव प्रचार प्रणाली की नकल कर रहा हो, उस समय में एक कश्मीरी का उन्हें पत्र लिखने का अर्थ आम दर्शक को समझ नहीं आता। अमेरिका कश्मीर में दखल देना भी चाहे तो मौजूदा भौगालिक आर्थिक समीकरण उसे ऐसा करने नहीं देंगे।
एक निर्देशक के तौर पर विधु विनोद चोपड़ा ने अपनी मुगले आजम फिल्म परिंदा में ही बना दी थी। खामोश, परिंदा और 1942 ए लव स्टोरी, बस इन तीन फिल्मों जितना ही उनका निर्देशकीय सफरनामा है। नई हीरोइन नेहा (शबाना रजा, अब मनोज बाजपेयी की पत्नी) को लेकर बनाई गई फिल्म करीब से उनका निर्देशन कौतुक चुकना शुरू हुआ और एकलव्य व शिकारा तक आते आते ये तिलिस्म बिखर चुका है।
फिल्म का गीत संगीत कश्मीरी है और हिंदी पट्टी में बहुत ज्यादा प्रचारित प्रसारित भी नहीं है, लिहाजा फिल्म को इससे कोई खास मदद मिलती नहीं है। हां, रंगराजन की सिनेमैटोग्राफी विश्व सिनेमा के टक्कर की है। विधु ने फिल्म के संपादन में अपना नाम भी दिया है सो फिल्म की ढीली पड़ती चाल भी उनके खाते में ही लिखी जाएगी। विधु विनोद चोपड़ा हिंदी सिनेमा के भीतर का निर्देशक रह रहकर हिलोरें तो लेता है, लेकिन इन लहरों के लिए उन्हें एक दमदार शिकारा चाहिए जो उनके निर्देशकीय कौशल को परिंदा वाली लय में लौटा सके। अमर उजाला मूवी रिव्यू में फिल्म शिकारा को मिलते हैं दो स्टार।
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1 टिप्पणियाँ
As claimed by Stanford Medical, It's in fact the ONLY reason women in this country get to live 10 years longer and weigh on average 42 pounds less than we do.
जवाब देंहटाएं(And really, it really has NOTHING to do with genetics or some secret exercise and really, EVERYTHING to do with "how" they eat.)
P.S, What I said is "HOW", and not "WHAT"...
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